पहले भाग से आगे -
देवर ने मेरी चूत के दाने (भग्नासा) को मुँह में लेकर कुल्फ़ी की तरह चूसा...
स्सीईईईईईई हाआआ देवर जी स्सीईईईईईईईईई बस करो स्स्सीईईईईई देवर जी ब्ब्ब्बस्स्स्स्स्स्स्स करो ! मैं बुदबुदाई।
देवर ने दाने को छोड़ा और जीभ से नीचे से ऊपर को चाटने लगा। जैसे ही उसकी जीभ मेरे दाने से टकराती, मेरे मुँह से अपने आप स्स्सीईईईई हाआआआआआ निकलता। मैं फ़िर से झड़ने के लिये तैयार हो गई तो मैंने देवर को रोक कर कहा- एक मिनट रुक जाओ ना... मैं फ़िर से बिना उसके ही झड़ जाऊंगी।
अपना लण्ड बाहर निकालकर....क्या बात है भाभी इतनी जल्दी....? देवर ने कहा।
मैंने उसको बताया कि मल्टिपल डिस्चार्ज की वजह से मेरे साथ ऐसे होता है, तुम्हारे भैया के साथ भी उनके निपटने से पहले मैं दो-तीन बार झड़ जाती हूं।
फ़िर तो आज सच में मज़ा आयेगा ! देवर ने कहा।
उसने यह भी बताया कि देवरानी तो कभी कभार ही झड़ती है वरना उसे ही फ़ारिग होकर उतरना पड़ता है।
मेरी मैक्सी और ऊपर सरकाकर मेरी एक चूची मुँह में लेकर वो चूसने लगा।
स्स्स्शाआआआआआ देवर जी....मत चूऊऊऊसो स्सीईईईईई।
देवर ने मेरी चूची छोड़ दी और मेरे ऊपर से उतरकर बगल में लेटकर बोला- ठीक है भाभी ! तुम मेरे ऊपर आओ और अपने हिसाब से जैसे चाहो वैसे करो.....।
मैं पलटकर उसके ऊपर आ गई। दोनों पंजों के बल बैठते हुये मैंने उसके लण्ड को पकड़कर छेद पर रखकर नीचे को जोर लगाया, सटाक से आधा लण्ड अन्दर सरक गया, धीरे-धीरे सरकते हुये मैंने पूरा लण्ड अपनी चूत में ले लिया लेकिन ऊपर उठते हुये मेरी सिसकारी निकल गई। उसके लण्ड के नीचे के मोटे हिस्से से सरककर जैसे ही टांके लगे हिस्से के पास पहुंचते ही चूत का मुँह सिकुड़ जाता और ऊपर सरकने पर चूत का छेद फ़िर से फ़ैलने लगता और सटक से लण्ड बाहर निकलने पर छेद फ़िर सिकुड़ जाता। फ़िर से नीचे बैठने पर यही प्रक्रिया होने से दुगुना मज़ा आने लगा लेकिन थोड़ी ही देर में मेरी जांघों में दर्द होने लगा। दर्द के बारे में बताने पर देवर मुझे उसी पोज में अपने ऊपर लिटाकर खुद ही नीचे से धक्के मारने लगा।
आआआ स्स्सीईईईईई .........ऊओ ओ ओ ओ स्स्सीईईईईईई......देवर ने अपनी स्पीड बढ़ा दी...... हाआआआ देवर र र र र र जी ईईईईईईईईईई !
मज़े में मेरे चूतड़ भी हिलने लगे और फ़क फ़का कर मैं दुबारा झड़ गई।
देवर ने मुझे अपने ऊपर से उतारकर साइड में लिटाया और मेरे ऊपर आकर बारी-बारी से मेरी चूचियाँ चूसने लगा। दस पन्द्रह मिनट में बाद फ़िर से मेरी कामवासना जागी तो देवर ने लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ कर मेरी चूचियाँ चूसते हुये अन्दर घुसे लण्ड पर झटके मारने लगा।
देवर ने पूछा- मज़ा आ रहा है भाभी....?
कभी कभी आ रहा है, जब वो अन्दर टकरा रहा है ! मैंने कहा।
देवर ने बेड पर पलटकर मुझे उल्टा कर घोड़ी बनाकर पीछे से घोड़ा बनकर पेलना शुरू किया।
यह स्टाइल बहुत गजब का था, मेरे पति ने कभी भी इस तरह नहीं किया था। इन अठारह सालों में मेरे पति ने साधारण तरीके से या कभी कभी मेरी दोनों टांगें अपने कंधे पर रखकर ही चोदा था। दूसरे तीसरे धक्के में ही मेरा चिल्लाना शुरू हो गया। एक तो देवर के लण्ड पर टांके की वजह से दो भागो में बंटा होने के कारण हर बार लगता था जैसे एक के बाद एक दो लण्ड बारी बारी से अन्दर बाहर हो रहे हों, दूसरा पूरा लण्ड अन्दर जाते गर्भाशय से टकराता और बाहर दाने पर दबाव पड़ते ही मुँह से स्स्सीईईईईई हाआआ निकल जाता।
हर धक्के के साथ मेरी चूत से हवा भी बाहर निकलने के कारण पर र र र र र की आवाज भी निकलने लगी। लगातार आधा घन्टा देवर ने मुझे इसी पोज में चोदा..... इतना जबरदस्त मज़ा आने के बाद भी मैं झड़ी नहीं।
देवर का पसीना मेरी पीठ के ऊपर टपकने लगा। देवर ने मेरी मैक्सी निकालकर मुझे नंगा कर बेड से उतारकर बेड की साइड में रखे एक बड़े से लोहे के बक्से के सहारे आधा झुकाकर खड़ा किया, मेरा एक पैर उठाकर बेड पर रखा और अपने बदन पर पहनी एक मात्र बनियान निकालकर मेरे पीछे से आकर मुझे बेड के कोने में रखे ड्रेसिंग टेबल के शीशे में देखते रहने को कहा। मेरी टांगों के नीचे आकर पहले तो उसने आठ-दस बार मेरी चूत को चाटा......
शीशे में देखते हुये अजीब सा लग रहा था। फ़िर मेरे पीछे खड़ा होकर उसने मेरी चूत में आधा लण्ड घुसेड़ कर मेरी दोनों चूचियों को पकड़ते हुये बाकी का आधा लण्ड अन्दर किया और इसी तरह पांच सात मिनट तक चोदने के बाद वो मुझे और झुकाकर मेरी कमर पकड़कर सटासट सटासट चोदने लगा।
ओ मां...... कितना मज़ा आ रहा था मैं यहां बयान नहीं कर सकती...।
जैसे ही उसका लण्ड मेरी चूत से बाहर आता..इससे पहले कि वो धक्का मारकर अन्दर करता....मदहोशी में मैं ही पीछे को धक्के मारकर स्स्सीईईईई हा आ आ करते हुये अन्दर लेने लगी। मैं झड़ने वाली थी.... मेरा एक हाथ अपने आप उसकी जान्घ पर गया और हर धक्के में उसकी जान्घ को पकड़कर अपनी तरफ़ खींचती और पीछे को धक्का मारती..... आआआ स्सीईईई देवर जीईई मेरा आआ हो.... स्सीईईई हो.... आआस्स्सीईईईई हो.......गयाऽऽऽ देवर जीईईईऽऽऽ।
मेरे दोनों पैर काम्पने लगे। देवर ने बेड पर रखा मेरा पैर नीचे किया, दोनो पैरों को थोड़ा फ़ासले पर किया और मेरी कमर पकड़कर पहले तो आहिस्ता आहिस्ता चोदा फ़िर जैसे ही स्पीड में चोदने लगा। मैंने शीशे में देखा मेरी चूत से सफ़ेद सफ़ेद टपक रहा था।
देवर हूं...हूं...हूं की आवाज निकालते हुये जोर जोर के धक्के मार रहा था.. मेरी चूत के दाने पर दर्द होने लगा.... इससे पहले कि मैं उसको बताती उसने ओ ओ ओ करते हुये इतनी जोर से धक्का मारा कि मेरे हाथ फ़िसल गये मैं छाती के बल जोर से बक्से के ऊपर पसर गई.... मेरी चूत से एक-दो इंच ऊपर हड्डी का हिस्सा बख्से के कोने से टकराया...मैं दर्द के मारे चिल्लाई- उईईई मां मर गई....। देवर ने तीन चार और धक्के उसी अवस्था में मारे और पच पच पच पच पच करके अपने वीर्य की पिचकारियाँ मेरी चूत के अन्दर मार दी। जब उसने अपना लण्ड बाहर खींचा तो चूत से पर र र र र्र र्र र्र की आवाज के साथ साथ ढेर सारा वीर्य निकलकर फ़र्श पर गिर गया। बड़ी मुश्किल से मैं बक्से के ऊपर से उठी.....
मैंने देखा मेरी चूत से थोड़ा ऊपर बक्से के कोने का निशान पड़ गया था। देवर ने देखा तो उसने मुझे बेड पर लिटाया और हथेली से उस निशान के ऊपर मालिश करने लगा। चुदाई का असल मज़ा मैंने आज लिया था....भले ही अब चूत में भयंकर दर्द हो रहा था।
मैंने बेड के ऊपर पड़ी मैक्सी से पहले अपनी चूत साफ़ की फ़िर देवर की वीर्य से सनी झांटों और लण्ड को तथा उसके बाद फ़र्श पर टपके वीर्य को साफ़ करने के बाद अलमारी से अपनी दूसरी मैक्सी निकालकर पहनी।
देवर ने अपनी बनियान पहनकर नीचे लुन्गी लपेटी और बेड पर बैठते हुये मुझे अपनी गोद में लेकर मेरे गालों और होंठों को चूमते हुये बोला- भाभी, यह अहसान मैं जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा..... पहली बार मैंने असली मज़ा लिया है। रात को भैया से मशवरा लेने के बाद मैं कल सुबह सुबह निकल जाऊंगा। फ़िर जिन्दगी में ये अवसर कभी नहीं आयेगा भाभी, मैं दस मिनट तुम्हारे साथ इसी बिस्तर पर लेटना चाहता हूं.... इन्कार मत करना भाभी...।
मैं भी एक बार और मज़ा लूटना चाहती थी लेकिन वक्त बहुत हो गया था... बबलू के उठने का डर भी था सो मैंने देवर से कहा- अगर मुझ पर इतना ही प्यार आ रहा है तो फ़िर कल दिन तक एक बार और मज़े लेकर शाम तक निकल जाना।
सच भाभी... कहते हुये वो लगातर दो-तीन मिनट तक मेरे गालों, होठों, माथे और आँखों को चूमता रहा जिससे मैं भी रोमांचित हो गई और उसी तरह उसको भी चूमने के बाद उसको समझाकर उसके कमरे में भेजा और बाथरूम से फ़ारिग होकर मैं बेड पर लेटी, अपनी आखें बन्दकर देवर के साथ लिये मज़े को कैद करती चली गई।
दूसरे दिन मेरा बेटा साढ़े सात बजे स्कूल चला गया और नौ बजे पतो ऑफ़िस। देवर ने पति से झूट बोला कि वो देवरानी के लिये बाजार से कुछ कपड़े खरीदकर दोपहर को निकल जायेगा।
मेरे पति के जाने के बाद देवर ने मुझे किचन से खींच कर बेडरूम में लेजाकर अपनी बगल में लिटाया और मुझे चूमते चाटते, मेरी चूचियों को मैक्सी के बाहर से ही भींचते हुये अपनी और देवरानी के सेक्स के बारे में बताने लगा। उसके अनुसार देवरानी बिल्कुल भी सैक्सी नहीं है...वो शुरू से ही सेक्स से बचती फ़िरती है...कभी भी उसने देवर के साथ सेक्स में सहयोग नहीं किया।
उसके पूछने पर मैंने भी बताया कि मेरे पति सेक्स के मामले में हर तरह से सक्षम हैं...पूरी तरह सन्तुष्ट करते हैं लेकिन देवर की तरह चूत चाटकर, घोड़ी बनाकर अलग अलग तरह से नहीं करते हैं।
बातचीत करते करते देवर ने अभी मेरी मैक्सी ऊपर सरकाकर मेरी चूत पर हाथ फ़ेरना शुरू किया ही था कि दरवाजे की घन्टी बज गई। हड़बड़ाहट में भागकर मैंने बाहर जाकर बरामदे का दरवाजा खोला तो सामने बबलू को देखकर मैं दंग रह गई।
दरवाजे पर खड़े खड़े मैंने पूछा- क्या हुआ..? स्कूल नहीं गया क्या...?
बबलू झुंझला कर बोला- अन्दर भी आने दोगी कि नहीं मम्मी, मेरे सिर में जोर का दर्द हो रहा है !
बोलते हुये वो अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया। मैंने जाकर उसके सिर पर हाथ रखा.....सिर तो ठंडा था।
बबलू बोला-- मम्मी, कोई दवाई हो तो दे दो और दरवाजा बन्द कर दो, मैं सोऊंगा।
मैंने उसको एक सेरिडान की गोली दी और बाहर आते हुये उसके कमरे का दरवाजा भी भेड़ दिया।
मेरा मन खराब हो गया गया... मैं देवर के साथ बलात्कार वाले अन्दाज में अपने आप को छुड़ाते हुये चिल्ला चिल्ला कर चुदवाना चाहती थी। मैं देखना चाहती थी कि कैसे कोई मर्द किसी औरत को बिना उसकी इच्छा के चोद सकता है और इसमें कितना मज़ा आता है......... पर बबलू तो सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया।
मैं बरामदे का दरवाजा बन्दकर गहरी सोच में डूब कर खड़ी हो गई कि अब तो कल की तरह चुदवाना भी मुश्किल हो गया है.....
तभी देवर मेरे बेडरूम की खिड़की से इशारा कर मेरा ध्यान हटाया और मैं उसके पास चली गई। उसके पूछने पर मैंने उसको अब अपनी योजना के बारे में बताया तो वो हंसने लगा और बोला- क्या भाभी.... यह तो अब भी हो सकता है ना।
मैंने पूछा- कैसे?
देवर ने याद दिलाई कि बाथरूम के साइड वाले गेस्ट रूम में जाकर कर सकते हैं। बेटे के कमरे तक वहाँ से कोई आवाज भी नहीं आयेगी लेकिन हमें दोपहर के खाने के बाद बेटे के सोने तक इन्तजार करना पड़ेगा। देवर चाबी लेकर गेस्ट रूम में ठीक ठाक करने चले गये और मैं रसोई का काम निपटाने।
काम निपटाकर मैं बेटे को देखने गई...वो सो रहा था। मैंने उसको दोपहर के खाने के बारे में पूछा तो उसने बताया कि कुछ भी बना लो पर दो बजे से पहले उसको डिस्टर्ब ना करूं। सरसों का तेल और पानी की मल्लम से मैंने बबलू के सिर पर थोड़ी देर मालिस की और उसको ये बोलकर कि मैं थोड़ी देर के लिये पड़ोस में जा रही हूँ, तेरे चाचा यहीं हैं, लौटकर खाना बनाऊँगी...
उसके कमरे दरवाजा खींचकर बाहर आई, किचन में जाकर तेल से सने हाथ को अपनी चूत पर साफ़ किया और हाथ साफ़ कर गेस्ट रूम गई। दरवाजे की कुन्डी बन्दकर देवर से बोली- तुमने अपनी माँ का दूध पिया तो करके दिखाओ.......?
देवर बेड पर लेटा था, वो उठकर बैठ गया और मेरी तरफ़ हैरानी से देखने लगा।
मैंने एक झटके में अपनी मैक्सी ऊपर उठाकर नीचे कर कहा- देख क्या रहे हो...? गांड में दम है तो आओ।
देवर झटके से उठकर मेरी तरफ़ लपका.....
मैं भागकर बेड की दूसरी तरफ़ भाग गई। थोड़ी ही देर में मैं देवर की गिरफ़्त में आ गई, बेड पर पटकने के बाद वो मेरी मैक्सी ऊपर सरका कर मेरी टांगे चौड़ी करने की कोशिश करने लगा और मैं अपना बचाव।
काफ़ी देर की उठा पटकी के बाद आखिरकार मैं थक गई थी, मुझ में बचाव करने की हिम्मत नहीं रही और मुझे चित्त कर वो मेरे ऊपर मेरी टांगों के बीच में आ गया। हंसते हुये अपनी कामयाबी पर गर्व करते हुये उसने मेरी चूत पर लण्ड रखकर जैसे ही धक्का मारा मैंने जोर लगाकर चूत को भींच लिया। पता नहीं उसने कितनी कोशिश की पर लण्ड चूत के अन्दर नहीं कर पाया। दोनों पसीने से तर-बतर हो चुके थे।
देवर ने एक बार फ़िर मेरी चूत पर अपना लण्ड सटाया और मेरी चूची को मुँह में भरकर जोर से दांत गड़ा दिये... मैं दर्द के मारे उचक गई.... और चूत ढीली पड़ते ही सटट्टाक से लण्ड एक ही बार में पूरा अन्दर घुस गया।
देवर बोला- अब क्या करोगी मेरी जान....
मैंने शांत रहते हुये कहा- अब मैं क्या कर सकती हूँ... जो कुछ करोगे तुम ही करोगे.....।
मेरे ऐसा बोलते ही वो धीरे धीरे हिलने लगा और मौका पाकर मैं नीचे से एक तरफ़ सरक गई और बेचारा फ़िर से लण्ड अन्दर डालने की कोशिश में लग गया।
यहाँ पर मैं संक्षेप में बता दूँ कि तीन घन्टे तक हमने चुदाई की। पहली बार तो बलात्कार के अन्दाज में, दूसरी बार कामसूत्र के ना जाने कितने आसनों के साथ, तीसरी बार देवर के जाने की वजह से भावुकता में।
देवर की इन तीन बार की चुदाई में मैं शायद सात-आठ बार झड़ी। बीस पच्चीस मिनट एक दूसरे की बाहों में लेटे रहने के बाद मैं किचन में दोपहर का खाना बनाने चली आई और देवर गेस्ट-रूम ठीक ठाक कर नहाने के बाद जाने के लिये तैयार हो गया।
खाना डायनिंग टेबल पर लगाने के बाद मैं बेटे को उठाने गई.... उसका चेहरा लाल हो रहा था... उसकी आँखें भी सूजी हुई थी.... घबरा कर मैंने उसको उठाया और देवर को बताया। देवर ने खाना खाकर उसको डाक्टर के पास ले चलने को कहा। खाना खाते खाते बबलू का चेहरा ठीक हो गया। थोड़ी देर आराम करने के बाद बबलू अपने चाचा को बस स्टाप तक छोड़कर लौटा।
सारे नजारे एक एक कर मेरी आँखों के सामने घूमकर खत्म होते ही मेरी नजर बबलू पर पड़ी उसकी निगाह मेरे ब्लाउज के ऊपर अटकी थी।
मैंने उसको पूछा कि यह बात उसने राजू को तो नहीं बताई तो उसने जवाब दिया कि चाचा वाली बात तो नहीं बताई लेकिन शादी वाली रात की बात बता दी थी।
मैंने उसको समझाया कि ऐसी बातें किसी को नहीं बताया करते... अच्छी बात नहीं होती है। जा अब अपने कमरे में जा।
मम्मी प्लीज.... एक बार चाचा की तरह करने दो ना... सिर्फ़ एक बार !
कर तो लिया था तूने शादी वाली रात.... बस अब नहीं ... मैंने कहा।
नहीं मम्मी वैसे नहीं....बक्से के पास जैसे चाचा ने किया था।
मेरे लाख डराने और समझाने पर भी वो अपनी जिद पर अड़ा रहा तो मैंने उससे वादा लिया कि इसके बाद वो इस बारे में कभी सोचेगा भी नहीं और चाचा या अपने बारे में किसी को भी कुछ नहीं बतायेगा... राजू को भी नहीं।
उसके बाद मैं उसके साथ बक्से के पास उसी अवस्था में जाकर खड़ी हो गई। बबलू ने मेरा पेटिकोट ऊपर सरकाया, नीचे बैठकर अपने चाचा की नकर उतारते हुये मेरी चूत को चाटा फ़िर पीछे से कमर पकड़कर चोदने लगा।
थोड़ी देर बाद बोला-- मम्मी चिल्लाओ ना जैसे चाचा के साथ चिल्ला रही थी।
अब मैं उसको कैसे समझाती कि उस वक्त तो मज़ा आ रहा था... मेरे मुँह से अपने आप आवाज निकल रही थी और इस वक्त एक तो ना चाहते हुये मजबूरी में बेटे से चुदवाने की ग्लानि और पतले से लण्ड से कैसे मज़े की आवाज निकल सकती है।
मैंने उससे कहा- बेटे जल्दी कर.... बेटे के साथ वैसे नहीं चिल्ला सकते और मैंने जानबूझकर अपनी चूत को भींच लिया जिस वजह से उसके लण्ड पर दबाव पड़ा और तीन चार धक्कों में ही हा आआ आआआआ करते हुये वो मेरे से चिपक गया।
उसके हटने के बाद मैं जैसे ही खड़ी हुई, मेरी चूत से पतला पानी जैसा उसका वीर्य टपकने लगा जिसे मैंने अपने पेटिकोट से पोंछा और उसको उसके कमरे में भेजते हुये उसको याद दिलाया कि वो फ़िर दुबारा ऐसा करने की कोशिश नहीं करेगा और किसी से इस बात का जिक्र नहीं करेगा।
मेरी समझ में भी आ गया कि हवस की आग हमेशा आँखें और दिमाग खुले रख आस-पास का मुआयना करने के बाद ही शान्त करने में अकलमन्दी होती है।
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